Jyoti Sinha

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अकाल लेखनी प्रतियोगिता -03-Feb-2022

शीर्षक - अकाल



बड़ा ही भयावह वह दृश्य होता है,
सिर्फ रोने और हुंकारने का परिदृश्य होता है,
अकाल सिर्फ एक घर में नहीं होता,
इस दुख में शामिल समाज होता है।
इंसान तो अपने पेट के लिए बीज बोता है,
लेकिन प्रकृति अगर चोट दे तो,
खेत में अन्न नहीं आंसू उगता है,
उन आंसुओं से उस भूमि का,दर्द का नाता है,
यह दर्द ही अकाल कहलाता है।
यह अकाल तो अनाज का ठहरा,
इससे इंसानों का रिश्ता है गहरा ,
अकाल कभी सोच का भी हो जाता है,
उसका भी इंसानी समाज से गहरा नाता है,
अकाल अगर समझदारी की हो जाए,
तब तो इंसान को ईश्वर ही बचाए।
इसलिए आओ सब मिल दुआ करते हैं,
ना प्रकृति हमसे रूठे, ना हम अपनों से टूटे,
खुद भी माने नियम और इसका प्रस्ताव रखते हैं।
आज हमसब सिर्फ अनाज ही नहीं 
सोच के भी अकाल से लड़ते हैं।
सिर्फ अच्छे सुंदर समाज की नींव रखते हैं।


                        ज्योति सिन्हा मुजफ्फरपुर, बिहार

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2 Comments

Sudhanshu pabdey

03-Feb-2022 09:25 PM

Very nice

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Swati chourasia

03-Feb-2022 05:22 PM

वाह बहुत सुंदर रचना 👌

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